जीवन परिचय-The Great Gama Biography in Hindi गामा पहलवान की जीवनी
वास्तविक नाम – गुलाम हुसैन बख्श
उपनाम – रुस्तम-ए-हिंद, रुस्तम-ए-जमां, द ग्रेट गामा
अखाड़ा में नाम – गामा पहलवान
शारीरिक संरचना
लम्बाई (लगभग) से० मी०- 173 , इन्च- 5’ 7”
वजन/भार -(लगभग) 110 कि० ग्रा०
शारीरिक संरचना (लगभग) -छाती: 46 इंच -कमर: 34 इंच -Biceps: 22 इंच
आँखों का रंग काला
बालों का रंग काला
व्यक्तिगत जीवन
जन्मतिथि 22 मई 1878
जन्मस्थान गांव जब्बोवाल अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि 23 मई 1960
मृत्यु स्थान लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान
मृत्यु कारण दिल की और अस्थमा की पुरानी बीमारी के कारण
आयु (मृत्यु के समय) 82 वर्ष
राशि मिथुन
राष्ट्रीयता भारतीय
गृहनगर अमृतसर, पंजाब, भारत
स्कूल/विद्यालय ज्ञात नहीं
महाविद्यालय/विश्वविद्यालय ज्ञात नहीं
शैक्षिक योग्यता ज्ञात नहीं
परिवार पिता – मोहम्मद अजीज बख्श पहलवान
माता- नाम ज्ञात नहीं
भाई- इमाम बख्श पहलवान
बहन- नही पता
धर्म इस्लाम
जाति कश्मीरी
शौक कसरत करना
पसंदीदा चीजें
पसंदीदा भोजन दूध और दुग्ध से बनने उत्पाद
पसंदीदा व्यंजन देसी मुर्गी, मेवे
वैवाहिक स्थिति विवाहित
पत्नी वज़ीर बेगम
बच्चे बेटी- 4
बेटा- 5
Contents
The Great Gama Biography in Hindi
गामा पहलवान की जीवनी
विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा [Gama] का जन्म सन 1880 ई, में एक मुसलमान परिवार में हुआ था !
उनके परिवार के लोगों को कुश्ती में गहरी रूचि थी , पंजाब के प्रसिद्ध पहलवान माधोसिंह
ने गामा [Gama] को कुश्ती लड़ना सिखाया था , विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा ने धाकड़ सिंह ,
अली सेन ,हसन बक्श तथा चंदा सिंह आदि पहलवानों को चित्त करने के बाद खलीफा गुलाम मोहिनुदीन को चुनौती दी ,
और उन्हें मात्र 8 मिनट में ही चित्त कर दिया ! उस समय भारत में केवल एक ही ऐसा पहलवान था
जो गामा से लड़ने और कुछ समय तक टिक सकने की क्षमता रखता था ! जिसका नाम रहीम सुल्तानीवाला था !
गामा और सुल्तानीवाला के बीच कई बार मुकाबला हुआ लेकिन एक बार भी निर्णय नही हो पाया कि विजेता कौन है !
कौन जनता था कि भारत का यह पहलवान गामा एक दिन रुस्तमे-जहां बन जायेगा !
इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी , परन्तु यह घटना 1910 ई. की है, एक बार लन्दन शहर में विश्व दंगल का आयोजन हुआ था , उस
समय एक अमीर बंगाली सेठ भारत के कुछ पहलवानों को लेकर ब्रिटेन गये थे, जिसमें इमामबक्श , अहमद बक्श तथा गामा शामिल थे ,लन्दन
में अंग्रेज दंगल आयोजको ने भारतीय पहलवानों की बड़ी बेइज्जती की ! गामा साढ़े पांच फुट लम्बे थे और उनका वजन 200 पौंड के लगभग
था !
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गामा पहलवान की जीवनी
लन्दन ,की कुस्ती में अंग्रेजों ने गामा [Gama] को उम्मीदवारों की सूची में शामिल नही किया ! उन्हें क्या पता था कि इस छोटे कद वाले
पहलवान का शरीर स्टील का है ! और वह दुनिया के बड़े से बड़े पहलवान से टक्कर लेने की क्षमता रखता है , विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा इस
बात से नाराज हो गये ,और उन्होंने दुनिया भर के पहलवानों को चुनौती देते हुए कहा कि जो पहलवान अखाड़े में मेरे सामने पांच मिनट तक
टिक जाएगा उसे पांच पौंड का नकद इनाम दिया जाएगा इसके पूर्व कई गिने चुने पहलवान गामा से लड़ने के लिए तैयार हो गये ,गामा ने पहले
अमेरिकी पहलवान रोलर को हराया और इमामबक्श ने स्विट्जरलैंड के कोनोली और जान लेम को देखते देखते पराजित कर दिया , इस पर
विदेशी पहलवानों और आयोजको ने साजिश के तहत गामा को विश्व विजेता स्टेनली जिविस्को से कुश्ती लड़ने का ऐलान कर दिया !
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गामा पहलवान की जीवनी
विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा (Gama) तथा जिविसको के बीच 12 दिसम्बर 1910 को कुश्ती का आयोजन किया गया ! जिविसको गामा से
अधिक लम्बा और भारी पहलवान था , यह कुश्ती 2 घंटे और 40 मिनट तक चली ! गामा ने पोल्लैंड के इस पहलवान को इतना थका दिया
जिससे उसके शरीर की सारी शक्ति ख़त्म हो गयी ! जब गामा ने जिविसको को नीचे पटका तो वह अपने बचाव के लिए लेट गया ! उसका
शरीर इतना वजनी था कि गामा उसे उठा नही सके , इस पर भी हार जीत का फैसला न हो सका तो कुश्ती को ड्रा घोषित कर दिया गया और
फैसले के लिए दुसरे दिन की तारीख तय की गयी , अगले दिन जिविसको इतना भयभीत हो गया कि मैदान में ही उपस्थित नही हुआ , दंगल के
आयोजक जिविसको की खोज-बीन करने लगे लेकिन वह न जाने कहा छिप गया और मैदान में भी नही पहुचा फलस्वरूप गामा को विश्व
विजेता बना दिया गया !
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गामा पहलवान की जीवनी
28 जनवरी 1928 को दोनों के बीच दुबारा कुश्ती पटियाला में हुयी , इस बार गामा (Gama) ने केवल ढाई मिनट में ही जिविसको को परास्त कर दिया , जिविसको ने गामा को अपने से श्रेष्ट पहलवान माना , हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार राय कृष्णदास के अनुसार इस मुकाबले को देखने के लिए 80 हजार दर्शक मैदान में आये हुए थे गामा की जीत के बाद पटियाला के महाराजा ने गामा को आधा मन भारी चाँदी की गुर्ज और 20 हजार रूपये उपहार स्वरूप भेंट किये थे !
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गामा पहलवान की जीवनी
रायकृष्ण दास द्वारा गामा की कुछ अन्य कुश्ती की प्रतियोगिताओं का उल्लेख किया गया -1911 ई. में प्रयाग में प्रदर्शनी हुयी , उस समय गामा पुरे चरम पर थे , रीवा के महाराज वेंतेश सिंह भी उस दंगल को देखने के लिए उपस्थित हुए थे, साथ ही साथ दुसरे राजा भी उपस्थित थे, सभी नरेशो के बैठने के लिए बॉक्स बनाये गये थे , केवल रतलाम के नरेश साधारण दर्शको में बैठे थे , यह उस जमाने के लिए बड़ा उदार एक साहसपूर्ण कदम माना जा सकता था !
वही पास में रीवा नरेश की कुर्सी के नीचे दरी पर गामा पहलवान ने स्थान ग्रहण किया था ! सर पर मुंडासा , तन पर पंजाबी कुर्ता और लूंगी ! ऐसे बैठे थे कि शरीर सम्पति का कोई अनुमान ही न होता था ! उनकी भिडत करीम नाम के पहलवान से होनी थी ! करीम मैदान पर अकड़-अकड़ कर ,एक बार दांयी और फिर बांयी ओर ताकता “या अली , या अली” गर्जन करता अखाड़े तक पहुचा ! गामा ने महाराजा के चरण स्पर्श किये ! मुड्सा , कुर्ता और लूंगी उतार कर रख दी और थोडा सा दूध जो पहले से ही तैयार था पीकर दो चार बैठके लगाकर एक बार जो शरीर को फुलाया तो लोग देखते रह गये !
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गामा पहलवान की जीवनी
गामा [Gama] की शारीरिक सुन्दरता का दर्शन करने हेतु काफी मात्रा में लोग उपस्थित हुए थे ! क्या बनाया था गामा ने अपने ठिगने शरीर को कोई कसर थी तो केवल पिंडलियों की जो उस भव्य निर्माण के हिसाब से उन्नीस पडती थी , वे काफी विन्रम स्वभाव से अखाड़े में पहुचे तथा पलक झपकते , ताल ठोकते ही दोनों लड़ गये , दाँव-पेच के करिश्मे होने लगे जिनमे गामा भारी पड़ते नजर आ रहे थे , लेकिन तभी अचानक करीम ने अपने शरीर को अखाड़े में डाल और बहुत तेज आवाज से हाय मार डाला ,हाय मार डाला कि आवाज लगा दी , रेफरी के पूछने पर करीम ने दर्द से कराहते हुए कहा कि गामा ने मेरी पसली तोड़ डाली है , वहां डॉक्टर भी मौजूद थे अच्छी तरह से चेक करने के बाद इसे बहाना मात्र बताया , बहुत कुछ कहने के बाद भी करीम दुबारा लड़ने के लिए तैयार नही हुआ तो गामा को रुस्तम- ए – हिन्द का गदा उपहार में भेंट किया गया , गदा को रीवा के महाराजा के चरणों में रखते हुए वापस उसी स्थान पर बैठ गए !
विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा लोगों को यह कहकर उत्साहित किया करते थे कि इंसान को कभी अपनी ताकत के घमंड में चूर नही होना चाहिए ,ईश्वर ने शक्ति दी है तो सिर नीचा करके चलो ! शक्तिवान बनकर कभी कमजोर को मत सताओ बल्कि उसका सहारा बनो ! अपने छोटे भाई इमाम बक्श को गामा हमेशा संयमपूर्ण जीवन जीने की सीख दिया करते थे !
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गामा पहलवान की जीवनी
रोजाना गामा पहलवान सरसों के तेल की मालिश किया करते , मालिश करने के बाद लगभग 2000 बैठक और 100 दंड लगाते थे , शाम को बैठक और दंड के बाद गदा भी घुमाते हल चलाना , पानी खींचना , 2-3 मील की दौड़ लगाना यह उनका नियमित कार्यक्रम था ! जिविसको ने विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा के बार कहा था कि मैंने कई पहलवानों से कुश्ती लड़ी है ,लेकिन मैंने गामा के जैसा पहलवान नहीं देखा , जितनी आसानी से गामा ने मुझे चित्त कर दिया उतनी आसानी से दुनिया का कोई ओर पहलवान मुझे चित्त नहीं कर सकता !
आजादी के बाद जब देश का बटवारा हुआ तब गामा पहलवान भारत से पाकिस्तान चले गए ! विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा के आखिरी तेरह साल बहुत गरीबी में गुजरे , रावी नदी के तट पर विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा को एक छोटी सी झोंपड़ी बनाकर रहना पड़ा , अभाव के कारण उन्हें उनका पसंदीदा भोजन नहीं मिल पाता था ! जिसके कारण वे बीमार रहने लगे !
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गामा पहलवान की जीवनी
उनकी बीमारी की खबर पाकर भारत वासी बहुत दुखी हुए ! पटियाला के राजा और बिडला भाइयो ने उनकी सहायता के लिए पैसे बिजवाये तब तक बहुत देर हो चुकी थी ! और 22 मई 1960 को उनकी मौत हो गयी , उनकी मौत की खबर सुनकर सम्पूर्ण भारत में शोक की लहर दौड़ गयी , उनके चाहने वाले आसू बहाने लगे , आज भी भारत देश में बहुत से ऐसे लोग है जिन्होंने गामा को देखा है ,उनकी कुश्ती देखी है , गामा मरकर भी आज हमारे बीच अमर है , तथा आने वाली पीढ़ी के लिए वे प्रेरणास्त्रोत रहेंगे , आज भी जब कहीं दंगल होता है तो उनकी कहानिया सुनने को मिल जाती है , विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा [Gama pahlwan] ने भारतीय कुश्ती को विश्व मंच पर जो सम्मान दिलाया , वह वास्तव में प्रसंसनिए है ! पूरी दुनिया ने गामा पहलवान की कुश्ती का लोहा माना है !
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