हाशिये से गायब होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी ,की सच्चाई ,हमारे धार्मिक ग्रंथों में हजारों ऐसे पात्र हैं.. जिनका उनके समय की घटनाओं में अहम रोल रहा है | लेकिन किसी ना किसी कारणवश उनका योगदान दुनिया के सामने नहीं आ पाया | कुछ लोगों का उस समय के राजाओं ने अपने लाभ के इस्तेमाल किया और फिर उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल कर अलग दिया | तो कुछ लोगों के काम का मुल्यांकन सही नहीं हो पाने के कारण भुला दिया गया | ऐसे ही मिलती जुलती होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी है |
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होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी

राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और पडोसी राज्य के राजकुमार इलोजी एक दूसरे को बहुत से चाहते थे | इलोजी बहुत ही खुबसूरत राजकुमार थे ,,उनके खूबसूरती के आगे देवता भी फीके पड़ जाते थे | होलिका भी बहुत खूबसूरत युवती थी | लोग इनकी जोड़ी की प्रसंशा किया करते थे | दोनों का विवाह भी तय हो चूका था | लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था | हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद के भगवान् भक्ती के कारण नाराज रहा करता था |
उसने हर कोशिश कर डाली फिर भी प्रह्लाद की आस्था और भक्ती मे कोई कमी नहीं आ रही थी | धीरे-धीरे हिरण्यकश्यप की नाराजगी क्रोध में बदलती चली गयी, और फिर एक दिन उसने अपने प्रहलाद को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने का निश्चय कर लिया | लेकिन बहुत कोशिशों के बाद भी वह प्रहलाद का बाल भी बांका नही कर पाया | राज्य की प्रजा हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से तंग आ चुकी थी | प्रहलाद के भोले स्वभाव के वजह से सभी लोगों की आशाएं उससे जुडी हुई थीं | प्रजा प्रहलाद से बहुत प्रेम करती थी |
होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी
हिरणयकश्यप ये बात जानता था |इसीलिए वह प्रहलाद के मृत्यु को एक एक्सीडेंट का रूप देना चाहता था और यह हो नहीं पाता था | एक दिन हिरनकश्यप को अपनी बहन होलिका को मिले वरदान की याद आ गयी | वरदान के अनुसार होलिका पर आग का कोई प्रभाव नहीं पडता था |उसने बहन होलिका को अपनी योजना बताई कि उसे प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में प्रवेश करना होगा | होलिका चकित हो गयी | वह अपने भतीजे प्रहलाद को अपने जान से भी ज्यादा प्रेम करती थी | क्योंकि होलिका ने ही उसे पाल-पोस कर बडा किया था | जिसकी जरा सी खरोंच से परेशान हो जाती थी | उसी की हत्या की कल्पना भी नहीं कर सकती थी |
इसीलिए होलिका ने अपने भाई के साजिस में शामिल होने से मना कर दिया | लेकिन हिरण्यकश्यप भी होलिका की कमजोरी जानता था, उसने भी होलिका को धमकी दी कि अगर उसने उसका कहा नही माना तो वह भी उसकी शादी इलोजी से नहीं होने देगा | होलिका अब बहुत बड़े धर्मसंकट में पड़ गयी. वह अपना चिंता के कारण उसने खाना-पीना-सब छोड़ दिया | एक और संत समान मासूम भतीजा था | तो दूसरी तरफ उसका सच्चा प्रेम , जिसके बगैर होलिका जीवित रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी |
होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी
अंत में मजबूर होकर उसने एक कठिन फ़ैसला लिया और हिरनकश्यप की बात मान ली, क्योंकि उसे डर था कि कहीं हिरण्यकश्यप इलोजी की हत्या न करवा दे | तय किये गये दिन, होलिका ने अपने वरदान प्रहलाद को दे दिया , और प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलते हुए आग में प्रवेश कर अपनी जान को बलिदान कर दिया, परन्तु होलिका के इस त्याग का किसी को भी पता नहीं चल पाया | यही दिन होलिका और इलोजी के शादी के लिए भी तय किया गया था | इलोजी इन सब बातों से बेख़बर अपनी बारात लेकर सही समय पर राजमहल आ पहुंचे | वहां आने पर जब इलोजी को सब बातें पता चलीं तो ,उसे बहुत बड़ा सदमा लगा | , इलोजी का दिमाग ने काम करना बंद कर दिया ,पागलपन का एक तूफ़ान उठ खडा हुआ और इसी पागलपन में इलोजी ने अपने कपड़े फाड़ डाले और होलिका-होलिका की दर्द भरी पुकार से धरती-आकाश गूँज उठा | और फिर होलिका की चिता पर लोटने लगे | गर्म चिता पर निढाल पड़े अपने आंसुओं से ही जैसे चिता को ठंडा कर अपनी प्रेमिका को ढूंढ रहे हों |उसके बाद उन्होंने पूरे जीवन शादी नहीं की | जंगलों में भटकते-भटकते सारी जिंदगी गुजार दी | आज भी राजस्थान में उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है | राजस्थान के लोक गीत और कहानियों में उन्हें आज भी होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी को ha याद किया जाता है | वहां के लोगों में वे आज भी जिन्दा हैं |
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